Saturday 26 September 2015

क्यों समाप्त नहीं हो सकता टोल टैक्स? : गडकरी जी से एक सवाल


बहुत समय से देश का एक वर्ग ऐसी हवा बनाए हुए था कि भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि देश से टैक्स खत्म कर दिए जाएं। कहीं न कहीं मुझे भी ऐसा लगता था कि भाजपा उन टैक्सेज को खत्म कर देगी जिनको लगाने के पीछे अंग्रेजों का उद्देश्य भारत और भारतीयों को लूटना था। लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के पहले कई बार बैठकों में भी भाजपा के नेताओं से सुना कि कांग्रेस सरकार ऐसे टैक्सेज लगा कर हमें लूट रही है। जब राजीव दीक्षित जी सर्कुलर टैक्सेशन सिस्टम के विषय में बोलते थे तो भाजपा के नेता भी उनकी हां में हां मिलाते थे। लेकिन अब ऐसा क्या हुआ कि  बीजेपी इन करों को समाप्त करने से बच रही है।

आज लेकिन केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस संभावना से पूरी तरह इनकार किया कि भविष्य में टोल टैक्स को वापस लिया जा सकता है। एक न्यूज चैनल की ओर से आयोजित कार्यक्रम के दौरान गडकरी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि टोल टैक्स कभी खत्म नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सरकार के पास सड़क बनाने के लिए पैसे नहीं हैं। टोल कम या ज्यादा हो सकता है पर खत्म नहीं। उन्होंने कहा कि यदि हमें बेहतर रोड का इस्तेमाल करना है तो टैक्स तो देना ही होगा। उन्होंने कहा कि सड़कों के निर्माण के लिए विदेश से कर्ज लेंगे तो ब्याज लगेगा।

मैं माननीय मंत्री महोदय से पूछना चाहता हूं कि इनकम टैक्स, कैपिटल गेन टैक्स और सर्विस टैक्स, वैट, कस्टम ड्यूटी, ऑक्टरॉय जैसे टैक्सेज का क्या करते हैं आप? क्या इस देश के विकास में इतना पैसा वास्तव में लगाते हैं।

मित्रों इस देश का टैक्सेशन सिस्टम भी जबरदस्त है।

मुझसे सरकार के एक प्रतिनिधि ने पूछा कि क्या करते हो?
तो मैंने कहा कि बिजनेस।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- प्रोफेशनल टैक्स चुकाओ।

सरकार के प्रतिनिधि ने फिर कहा -क्या बिजनेस करते हो?
मैंने कहा -सामान बेचता हूं।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा -सेल्स टैक्स चुकाओ।

सरकार के प्रतिनिधि का अगला प्रश्न था कि सामान लाते कहां से हो?
मैंने कहा -दूसरे प्रदेशों या विदेश से।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा -सेन्ट्रल सेल्स टैक्स, कस्टम ड्यूटी और ऑक्टरॉय चुकाओ।

सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- आप चीजें कहां बनाते हो(पैकिंग इत्यादि)?
मैंने कहा- फैक्ट्री में।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- एक्साइज ड्यूटी चुकाओ।

सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- क्या आपके पास ऑफिस, फैक्ट्री है?
मैंने कहा- हां।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- मुंशिपल और फायर टैक्स चुकाओ।

सरकार के प्रतिनिधि ने फिर कहा- क्या आपके पास स्टॉफ है?
मैंने कहा- हां
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- स्टाफ प्रोफेशनल टैक्स चुकाओ

सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- आप किसी प्रकार की सर्विस लेते या देते हो?
मैंने कहा- हां।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- सर्विस टैक्स चुकाओ।

सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- आप बिजनेस की वजह से काफी टेंशन में रहते होंगे।
मैंने कहा- हां।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- आप टेंशन मिटाने के लिए क्या करते हो?
मैंने कहा- फिल्म देखने चला जाता हूं।
तो सरकार के प्रतिनिधि ने कहा- इंटरटेनमेंट टैक्स चुकाओ।

और अगर एक भी टैक्स चुकाने में देरी की तो पेनॉल्टी / फाइन अलग से दो।


ये है हमारा टैक्सेशन सिस्टम। ये सिर्फ बड़े कारोबारियों के लिए ही नहीं है। अगर आप अपनी गली में या गांव में सेवा भाव से कोई छोटी सी दुकान भी चला रहे हैं तो भी आपको ये सारे टैक्सेज चुकाने पड़ेंगे। अब आप स्वयं सोचकर देखिए कि यदि आपके मन में एक बार सेवा भाव आया तो क्या आप कर पाएंगे।
मैंने सरकार के उस प्रतिनिधि के समक्ष भी यही कहा तो वो बोले कि इन सारे टैक्सेज से ही तो सरकार चलती है। इन्ही से तो विकास का काम होता है। इतना कहकर वो चले गए। अब कोई मुझे ये बताए कि क्या वास्तव में इन टैक्सेज से ही विकास होता है।

हमारे दिए गए टैक्सेज से देश के नेताओं को तन्ख्वाह दी जाती है। दुर्भाग्य देखिए कि जिस देश में अर्थशास्त्र का जन्म हुआ, जिस देश में चाणक्य जैसा अर्थशास्त्री हुआ उस देश में अर्थशास्त्र की परिभाषा ही बदल गई।
अन्त में माननीय गडकरी जी से मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं कि कृपया राजधर्म का पालन करते हुए सामान्य जनमानस की परिस्थियों को समझते हुए कुछ भी बोलें। आपको यह समझना होगा कि राजनीति का अर्थ राज करने की नीति न होकर राजकीय व्यवस्था को चलाने की नीति है।



No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...