Wednesday 5 August 2015

राम मंदिर कब बनेगा?


कल शाम कुछ वामपंथी मित्रों के साथ बैठा हुआ था, उन सभी के साथ चर्चा का विषय था मोदी सरकार का एक साल...जैसा कि वामपंथी परंपरा रही है कि जब उनके पास मूल तथ्य या तार्किक विषय नहीं रहता है तो वो विषय से चर्चा से भटका देते हैं। ऐसा ही कुछ कल भी हुआ, एक मित्र ने कहा कि तुम्हारे राम का मंदिर कब बनेगा?
उनके इस प्रश्न को सुनकर मैं समझ गया कि अब उनके पास कोई तर्क नहीं बचा है...लेकिन उनके प्रश्न ने मुझे ब्लॉग लिखने का एक विषय दे दिया..मैं इस ब्लॉग के माध्यम से राम मंदिर के विषय में अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूं।

प्रश्न था कि तुम्हारे राम का मंदिर कब बनेगा?
मेरे राम का मंदिर तो बना हुआ है, मेरे राम मेरे मन में बसते हैं और मेरे राम का मंदिर पूर्ण रूप से पूर्ण भव्यता के साथ बना हुआ है। जहां तक बात है अयोध्या के राम मंदिर की तो वो मेरे राम का नहीं हमारे राम का मंदिर है। राम जिस दिन मेरे तुम्हारे से हटकर अपने हो गए उसी दिन भव्य राम मंदिर का निर्माण हो जाएगा। दिस राम की मैं वन्दना करता हूं वो राष्ट्रदेव राम हैं। वो राष्ट्रदेव राम एक ऐसे चेतन तत्व हैं जो दुनिया के कण कण में समाए हुए हैं। राम मंदिर के भव्य निर्माण से पहले हमें यह समझना होगा कि राम कौन हैं, राम कोई और नहीं हम स्वयं हैं। जब हमारी आखों के सामने कुछ गलत हो रहा हो और हम उसके खिलाफ संघर्ष करें तो समझ लेना कि राम आ गए और जब हम उसका विरोध न करें तो समझ लेना हम पर रावण हावी हो रहा है।
जब हमारे यहां किसी बच्चे का जन्म होता है तो यही कहा जाता है कि राम को कौशल्या ने जन्म दिया है न कि ये कहा जाता है विश्व गौरव या फलाने ने जन्म लिया है। राम किसी उपन्यास के पात्र नहीं हैं, यदि वह किसी उपन्यास के पात्र होते तो यह नाम कब का मिट गया होता। राम राष्ट्र की संस्कृति के आधार हैं, और इसी लिए जब भारत में किसी का विवाह होता है तो महिलाएं जो गीत गाती हैं उसमें यही कहती हैं कि राम और सीता का विवाह हो रहा है।
हमारे यहां कहा भी गया है कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।




दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है, क्योंकि दृष्टि का परिवर्तन मौलिक परिवर्तन है। अतः दृष्टि को बदलें सृष्टि को नहीं, दृष्टि का परिवर्तन संभव है, सृष्टि का नहीं। दृष्टि को बदला जा सकता है, सृष्टि को नहीं। हाँ, इतना जरूर है कि दृष्टि के परिवर्तन में सृष्टिभी बदल जाती है। इसलिए तो सम्यकदृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या दृष्टि बुराइयों को देखता है। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हमारी दृष्टि पर आधारित हैं।
श्री राम के रूप को लेकर संटों में मटभेद हो सकते हैं कोई सगुण राम को मानता है तो कोई निर्गुण राम को, कोई प्रेम मार्गी है तो कोई अन्य किसी रूप में लेकिन सभी के राम का चरित्र एक जैसा ही है।
हमारे राम का मंदिर मुझे या नरेन्द्र मोदी को नहीं बनाना है वो मंदिर हमें बनाना पड़ेगा। 6 दिसंबर को जब हमारा स्वाभिमान जागा और ढ़ांचा गिराया गया तो एक प्रश्न उठा कि प्रेम की प्रतिमूर्ति श्री राम के मंदिर निर्माण के लिए आन्दोलन की आवश्यकता क्यों पड़ी?

इस बात का उत्तर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने बहुत पहले ही दे दिया था। उन्होंने कहा था कि
"शस्त्र नहीं हैं वहाँ.. शास्त्र सिर धुनते और रोते हैं,
ऋषियों को भी सिद्धि तभी मिलती है
जब पहरे पर स्वयं धनुर्धर राम खड़े होते हैं."
मेरे एक पूर्वज ने कहा था कि जो कायर होते हैं उनके देवता भी कायर होते हैं। इसी कारण राम मंदिर टूट गया। जब हमने कायरता धारण की तो बाबर ने हमारे राम का मंदिर तोड़ दिया तब श्री राम भी कुछ नहीं कर पाए और जब हमने कायरता का परित्याग किया तो ढ़ांचा गिर गया। हमने भक्ति योग को तो ध्यान में रखा लेकिन शक्ति का प्रयोग करना भूल गए।
घर में बैठकर राम की पूजा करने से धरती स्वर्ग नहीं बनेगी, धरती को स्वर्ग बनाने के लिए हमें राम के चरित्र को स्वयं में उतारना पड़ेगा। बिना शक्ति के भक्ति का कोई महत्व नहीं रहता।

कुछ लोग कहते हैं कि एक नहीं बनेगा तो क्या हो जाएगा, आज तक 3000 से अधिक मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया गया लेकिन हम उन 3000 मंदिरों के लिए आंदोलन नहीं कर रहे। हमारी आस्था के आधार मंदिरों में 3 प्रमुख मंदिर आते हैं, एक- अयोध्या का राम मंदिर दूसरा काशी का बाबा विश्वनाथ का मंदिर तथा तीसरा मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि। और इन मंदिरों के लिए नियमित संघर्ष चल रहा है।

मित्रों मेरे कुछ मित्र कहते हैं कि बाबरी ढ़ांचा गिराकर राष्ट्रवादियों ने मुस्लिमों का अपमान हुआ है। मैं उनसे मात्र एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि हम हजारों सालों से रावण का पुतला जलाते हैं तो उससे नाराज होकर क्या ब्राह्मणों ने कभी कहा कि इससे हमारा अपमान हो रहा है। इस देश का सच्चा मुस्लिम कभी स्वयं को बाबर की औलाद नहीं मान सकता।

राम मंदिर निर्माण के लिए एकजुट हों और सभी मुस्लिम भाइयों से निवेदन है कि राम मंदिर को किसी मजहब से न जोड़ें । राम सिर्फ हिन्दुओं के न होकर इस देश की अस्मिता के आधार हैं।

भगवान राम सिर्फ हिन्दुओं के आस्था के कारण ही भगवान नहीं हैं बल्कि वे अपने कर्मों की वजह से पूजे जाते हैं और, पुरुषोत्तम कहलाते हैं-

  • भगवान राम द्वारा सीता को यह वचन दिया जाना कि मैं अपने जीवन में सिर्फ एक ही विवाह करूँगा, और तुम मेरी एकमात्र पत्नी रहोगी यह दर्शाता है कि वे बहुविवाह के विरोधी थे जो कि उस समय बहुत ही आम बात थी ( आज भी हिन्दुओं में भगवान् राम की तरह एक विवाह की ही मान्यता है)। 
  • जंगल में निषादराज से गले मिलकर भगवान राम ने उंच-नीच की भावना पर कुठाराघात किया और हमें यह सन्देश दिया कि जाति अथवा धन आधारित विभेद नहीं होना चाहिए !, सबरी जो कि एक अछूत जाति से थी उसके हाथों के जूते बेर खा कर उन्होंने जाति या वर्ण व्यवस्था को कर्म  आधारित प्रमाणित कर दिया और हमें यह सन्देश दिया कि मोल व्यक्तियों और उसकी भावनाओं का होता है ना कि उसके कुल या जाति का !
  • जंगल में ही अहिल्या को शापमुक्त कर उन्होंने यह सन्देश दिया कि अनजाने में हुए गलती गलती नहीं कहलाती है और, बेहतर भविष्य के लिए उसे माफ़ कर देना ही उचित है !, बाली वध का सार यह है कि अगर आपका मित्र सही है तो किसी भी हालत में आपको आपके मित्र की सहायता करनी चाहिए और, येन-केन-प्रकारेण पृथ्वी पर से दुष्टों का संहार जरुरी है ताकि सज्जन चैन से जी सकें !, 
  • सीता जी के अपहरण के पश्चात् पहले समुद्र से विनय पूर्वक रास्ता मांगना फिर उस पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार को उत्तेजित होना यह दर्शाता है कि शक्तिसंपन्न होने के बाद भी लोगों को अपनी मर्यादा नहीं भुलानी चाहिए.!, समुद्र को मात्र एक बाण से सुखा देने कि क्षमता होने के वाबजूद भी समुद्र पर राम सेतु का बनाना हमें यह सिखाता है कि अगर कम बन जाए तो बिना वजह शक्ति प्रदर्शन अनुचित है और, अपने से कमजोर को ताकत के बल पर अपना पसंदीदा काम करवाना सर्वथा अनुचित है !
  • रावण वध के पश्चात् लक्ष्मण को उसके पास शिक्षा ग्रहण करने को भेजना हमें सिखाता है कि ज्ञान जिस से भी मिले जरुर ग्रहण करना चाहिए और, मनुष्य ये कभी भी नहीं समझना चाहिए कि वो सम्पूर्ण है !, 
  • सीता की अग्नि परीक्षा पर भगवन राम कहते हैं कि ""आज ये सीता की अग्नि परीक्षा अंतिम अग्नि परीक्षा है और, दुनिया में फिर किसी नारी को ऐसी प्रताड़ना नहीं दी जाएगी, मनुष्य को अपनी अर्धागिनी पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि माता सीता उतने वर्ष रावण जैसे व्यक्ति के पास रह कर भी पवित्र ही थी !, ठीक उसी प्रकार आधुनिक नारी को भी घर में अथवा बाहर अकेला छोड़ देने के बाद उसकी बातों और उसकी पवित्रता पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि, नारी वो शक्ति है जो रावण जैसे नराधम के पार अकेली रह कर भी अपनी लाज की रक्षा करने में सक्षम है !, यदि अग्नि परीक्षा नहीं हुई होती तो नारी की सच्चाई संदिग्ध ही जाती और, वो विश्वास का मामला होता परन्तु अग्नि परीक्षा ने यह साबित कर दिया कि नारी पर शक करने का कोई कारण नहीं है खास कर जब वो आपकी अर्धांगिनी हो !
     
  • एक धोबी के कहने पर भगवान् राम द्वारा माता सीता का परित्याग भगवान राम का राजधर्म था जहाँ उन्होंने माता सीता का परित्याग कर यह सन्देश दिया कि राजा की अपनी कोई ख़ुशी अथवा गम नहीं होना चाहिए !, अगर राज्य का एक भी व्यक्ति भले ही वो एक धोबी जैसा निर्धन, निर्बल ही क्यों ना हो उसका मत भी महत्वपूर्ण है और, उसके राय भी महत्वपूर्ण हैं !, कोई भी काम सर्वसम्मति के करना चाहिए और, सर्वसम्मति बनाने के लिए अगर राजा को अपनी निजी खुशी को यदि बलिदान भी करना पड़े तो राजा को कर देना चाहिए क्योंकि राजा बनने के व्यक्ति खुद का या परिवार का नहीं रह जाता है बल्कि वो राज्य का हो जाता है ! प्रजा की ख़ुशी में ही राजा की ख़ुशी होनी चाहिए और, प्रजा के दुःख में ही राजा का भी दुःख निहित है ! 


भगवान राम के हर काम में हमारे लिए अहम् सन्देश है...! तो कहने का मूल तात्पर्य यह है कि राम के चरित्र को अपनाओ तभी राम राज्य आएगा और उस चरित्र को अपनाने के लिए राम मंदिर का भव्य निर्माण परम आवश्यक है वो भी प्रत्येक नागरिक के सहयोग से।

वन्दे मातरम

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