अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2 से आगे
पाकिस्तान में की नौकरी
डोभाल ने सात साल लाहौर में मुसलमान बनकर गुजारे और तरह-तरह का भेष बदलकर जासूसी की है। उन्होंने इस्लामाबाद में नौकरी भी की है। अजित डोभाल ने न केवल पाकिस्तान की जमीन पर सालों गुजारे बल्कि वो चीन और बांग्लादेश की सीमा के उस पार मौजूद आतंकवादी संगठनों और घुसपैठियों की नाक में नकेल डालने में भी कामयाब रहे हैं। यही नहीं डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी संभालीं और फिर करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा का लीड किया।
ओबामा की भारत यात्रा
वैसे बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को आमंत्रित करने की सलाह उन्होंने ही मोदी को दी थी। कहते हैं कि उन्होने ही अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बात कर राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा तय करवाई। उन्हें जानने वाले लोग बताते हैं कि राजग के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र को खबरों में बने रहना अच्छा लगता था जबकि डोभाल चुपचाप काम करने में विश्वास करते हैं। शायद इसकी एक वजह उनकी आईबी की जासूस पृष्ठभूमि भी है।
विदेश दौरों में खास रोल
डोभाल ने चाइना, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, जापान आदि मोदीजी के अनेकों सफल विदेश दौरों पर अपना रोल बखूबी निभाया। चाहे डिफेंस मिनिस्टर हो चाहे होम मिनिस्टर हो, चाहे प्राइम मिनिस्टर हो, सबको इन पर काफी भरोसा है। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मामला हो या विदेश नीति से संबंध का कोई मसला या रक्षा सौदों की बात हो। हर जगह उनकी सलाह ली जा रही हैं। चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों के मामले में तो उनकी भूमिका और भी अहम है। अमेरिका के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर बात करनी हो या यूरोपीय देशों से काला धन लाने की मुहिम हो, हर जगह उनकी सलाह ली जा रही है।
इजराइल से समझौता
जो रक्षा खरीद दशकों से नहीं हो पायी थी, उन्हें उनके आते ही हरी झंडी मिलनी शुरु हो गई है। इजरायल से रक्षा संबंधी उपकरणों की 525 मिलियन डॉलर का सौदा वर्षों से लटका चला आ रहा था। अक्टूबर में डोभाल की वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोसेफ कोहेन के साथ मुलाकात हुई व तीसरे ही दिन ही इसे खरीद की स्वीकृति जारी कर दी गई। माना जाता है कि वे शुरु से ही इजरायल के साथ रक्षा क्षेत्र में घनिष्ठ रिश्ते बनाए जाने के समर्थक रहे हैं। डोभाल को फाइलों पर नोटिंग कर उसे एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में या फिर विभागों में चक्कर खिलवाते रहने का शौक नहीं है। वे फैसले लेने में जरा भी देर नहीं करते हैं।
दिमाग से ज्यादा तेज काम करता है मुंह
उनके बारे में आईबी में एक चुटकुला काफी चर्चित रहा। वहां के लोग बताते हैं कि उनका मुंह उनके दिमाग से भी कहीं ज्यादा तेजी से काम करता है। यही वजह है कि जब वे बोलते हैं तो अक्सर तमाम शब्द मुंह में ही छूट जाते हैं क्योंकि दिमाग जो सोच रहा होता है, जुबान उससे पहले ही उसे कह देने के लिए बैचेन रहती है। उनकी एक खासियत यह भी है कि वे आमतौर पर आला अफसरों की तरह सरकारी प्रोटोकाल निभाने में विश्वास नहीं रखते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी से करीबी
श्री अजित डोभाल भारत में हिम्मत और जासूसी की दुनिया का एक चेहरा बन गये हैं । वो आज नरेंद्र मोदी की सरकार में रुतबे और रसूख की एक नई पहचान बन चुके हैं । देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की प्रधानमंत्री मोदी से ये करीबियत ही उनकी अहमियत को बयान कर देती है। अजीत डोभाल ने सीमापार पलने वाले आतंकवाद को करीब से देखा है और आज भी आतंकवाद के खिलाफ उनका रुख बेहद सख्त माना जाता है। कहते हैं ऊपरवाले ने इनमें देश के दुश्मनों की खातिर दया का एक भी पुर्जा नहीं बनाया है।
पढ़ें-
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.1
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2
पाकिस्तान में की नौकरी
डोभाल ने सात साल लाहौर में मुसलमान बनकर गुजारे और तरह-तरह का भेष बदलकर जासूसी की है। उन्होंने इस्लामाबाद में नौकरी भी की है। अजित डोभाल ने न केवल पाकिस्तान की जमीन पर सालों गुजारे बल्कि वो चीन और बांग्लादेश की सीमा के उस पार मौजूद आतंकवादी संगठनों और घुसपैठियों की नाक में नकेल डालने में भी कामयाब रहे हैं। यही नहीं डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी संभालीं और फिर करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा का लीड किया।
ओबामा की भारत यात्रा
वैसे बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को आमंत्रित करने की सलाह उन्होंने ही मोदी को दी थी। कहते हैं कि उन्होने ही अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बात कर राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा तय करवाई। उन्हें जानने वाले लोग बताते हैं कि राजग के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र को खबरों में बने रहना अच्छा लगता था जबकि डोभाल चुपचाप काम करने में विश्वास करते हैं। शायद इसकी एक वजह उनकी आईबी की जासूस पृष्ठभूमि भी है।
विदेश दौरों में खास रोल
डोभाल ने चाइना, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, जापान आदि मोदीजी के अनेकों सफल विदेश दौरों पर अपना रोल बखूबी निभाया। चाहे डिफेंस मिनिस्टर हो चाहे होम मिनिस्टर हो, चाहे प्राइम मिनिस्टर हो, सबको इन पर काफी भरोसा है। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मामला हो या विदेश नीति से संबंध का कोई मसला या रक्षा सौदों की बात हो। हर जगह उनकी सलाह ली जा रही हैं। चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों के मामले में तो उनकी भूमिका और भी अहम है। अमेरिका के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर बात करनी हो या यूरोपीय देशों से काला धन लाने की मुहिम हो, हर जगह उनकी सलाह ली जा रही है।
इजराइल से समझौता
जो रक्षा खरीद दशकों से नहीं हो पायी थी, उन्हें उनके आते ही हरी झंडी मिलनी शुरु हो गई है। इजरायल से रक्षा संबंधी उपकरणों की 525 मिलियन डॉलर का सौदा वर्षों से लटका चला आ रहा था। अक्टूबर में डोभाल की वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोसेफ कोहेन के साथ मुलाकात हुई व तीसरे ही दिन ही इसे खरीद की स्वीकृति जारी कर दी गई। माना जाता है कि वे शुरु से ही इजरायल के साथ रक्षा क्षेत्र में घनिष्ठ रिश्ते बनाए जाने के समर्थक रहे हैं। डोभाल को फाइलों पर नोटिंग कर उसे एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में या फिर विभागों में चक्कर खिलवाते रहने का शौक नहीं है। वे फैसले लेने में जरा भी देर नहीं करते हैं।
दिमाग से ज्यादा तेज काम करता है मुंह
उनके बारे में आईबी में एक चुटकुला काफी चर्चित रहा। वहां के लोग बताते हैं कि उनका मुंह उनके दिमाग से भी कहीं ज्यादा तेजी से काम करता है। यही वजह है कि जब वे बोलते हैं तो अक्सर तमाम शब्द मुंह में ही छूट जाते हैं क्योंकि दिमाग जो सोच रहा होता है, जुबान उससे पहले ही उसे कह देने के लिए बैचेन रहती है। उनकी एक खासियत यह भी है कि वे आमतौर पर आला अफसरों की तरह सरकारी प्रोटोकाल निभाने में विश्वास नहीं रखते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी से करीबी
श्री अजित डोभाल भारत में हिम्मत और जासूसी की दुनिया का एक चेहरा बन गये हैं । वो आज नरेंद्र मोदी की सरकार में रुतबे और रसूख की एक नई पहचान बन चुके हैं । देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की प्रधानमंत्री मोदी से ये करीबियत ही उनकी अहमियत को बयान कर देती है। अजीत डोभाल ने सीमापार पलने वाले आतंकवाद को करीब से देखा है और आज भी आतंकवाद के खिलाफ उनका रुख बेहद सख्त माना जाता है। कहते हैं ऊपरवाले ने इनमें देश के दुश्मनों की खातिर दया का एक भी पुर्जा नहीं बनाया है।
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अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2
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