Wednesday 18 March 2015

नारी और हमारे समाज की विकृत मानसिकता

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का सर्वाधिक योगदान है तो वो नारी का है। ये दुर्भाग्य है हमारा कि हमारे देश में ये सब हो रहा है, आखिर क्यों एक लड़की की इज्जत सरेआम नीलाम कर दी जाती है? क्यों ये देश जो विश्वगुरू के नाम से जाना जाता था आज अपनी ही परंपराओं से मँह चुराता हुआ दिख रहा है? आधुनिक इंडियन समाज का एक अजीब है किंतु शाश्वत सत्य है कि लोग फुटपाथ की नग्न भिखारिन का तन ढकने के लिए तो एक कपड़े का टुकड़ा तक नहीं खरीद कर दे सकते पर किसी बिस्तर पर स्त्री को निर्वस्त्र करने के लिए हजारों रुपए लुटा देते हैं।

हम श्री रामचरित मानस का पाठ तो आज भी करते हैं लेकिन उस श्री राम के चरित्र को समझ नहीं पाए। मैं इतिहास से जोड़कर बताता हूं कि राम क्या हैं ? सीता जी का हरण करने के बाद रावण सीता जी को समझा समझा कर हार गया था पर सीता जी ने रावण की तरफ एक बार देखा तक नहीं था। रावण की पत्नी मंदोदरी से रावण की ये दशा देखी नहीं गई तो मंदोदरी ने एक उपाय बताया। उसने रावण से कहा कि तुम तो मायावी हो कोई भी रूप रख सकते हो, तो तुम राम बन के सीता के पास जाओ तब वो तुम्हें जरूर देखेगी। रावण ने उत्तर दिया कि मैं ऐसा कई बार कर चुका हूं मंदोदरी लेकिन राम बनने के बाद मैं स्वयं सीता को नहीं देख सका क्योंकि मैं जब-जब राम बनता हूँ मुझे पराई नारी अपनी माता और अपनी पुत्री सी दिखती है। हमें समझना होगा कि राम कोई व्यक्ति नहीं एक विचार हैं। हमारा नैतिक पतन उसी दिन से शुरू हो गया था जब हम मंदिरों में राम को ढूढ़ंने निकल पड़े थे। आज के समाज में व्यक्तिवादिता का प्रभाव इस प्रकार से हो गया है कि हम अपने मूल चरित्र को भूलते जा रहे हैं। आधुनिकता की आँधी में हम इस कदर बहे जा रहे हैं कि अपनी संस्कृति को ताक पर रखकर नग्नता को ही आधुनिकता समझने लगे हैं। इस तथाकथित आधुनिकता के नाम पर हमने राम के चरित्र को भूलकर रावण के चरित्र का प्रतिपादन शुरू कर दिया है।

लड़खड़ायी बुढ़िया को उठाने भरे बाजार मे कोई न झुका
और गोरी का झुमका क्या गिरा, बाजार घुटनों पर आ गया
ये जुमला कोई सामान्य जुमला नहीं है अपितु यह जुमला वर्तमान समाज के सच को प्रदर्शित कर रहा है।आज के समाज की स्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है। एक बार महसूस करके देखिए क्या आज का पुरुष, महिला को भोग्या की दृष्टि से नहीं देखता?

आप सड़कों की बात करते हो दोस्तों !
ये "बेटियां" तो गर्भ में भी महफूज नही हैं।
एक जमाना था जब युवा देश के लिए मर मिटने को तैयार रहते थे । आज के युवा की स्थिति कैसी हो गई है कुछ उदाहरण देखिए। आज के युवा से पूछो कि उदास क्यों हो? तो अगला रोते हुये बोलेगा, यार तेरी भाभी नाराज हो गई । इस वाक्य की गहराईयों में जाकर देखिए कि आखिर इस देश के युवाओं का आधार क्या बन रहा है। उनसे पूछो  अरे ये बालो पर क्या लगा रहा है? तो  उत्तर मिलेगा यार सिर के कुछ बाल सफेद होने लगे हैं, ये T.V. पर देखा तो मँगा लिया। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि जिस चीज का प्रयोग वो कर रहे हैं उसका शरीर पर प्रभाव अथवा बालों पर क्या दुष्प्रभाव होगा और जब उनसे पूछो कि कितने रुपए लगे? तो उत्तर मिलता है कि ज्यादा नही , बस 3499। अरे कोई उन मूर्खों से पूछो कि जिस देश में 70 करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रूपए कमाने की स्थिति में न हों उस देश में 3499 रूपए बालों पर खर्च कर देना कहां की समझदारी  है। जब उनसे पूछो कि  अच्छा ये बता इस बार देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? तो उत्तर देते हैं कि मिलेगा कि अरे यार ये फालतू के लोगों का काम है मुझे ये सब बिल्कुल पसन्द नहीँ है। उनसे आगे पूछो कि अच्छा देश के लिए तू क्या सोचता है ? तो कहते हैं कि छोड़ ना यार क्या देश का रोना लगा रखा है और आज वैसे भी मेरा मूड खराब है मेरी जानू ने मेरे मैसेज  का रिप्लाई नहीँ किया।

ये स्थिति मात्र लड़कों की ही नहीं है पहले की लड़कियां लक्ष्मीबाई जैसी होती थीं और आज
 हे भगवान ! प्रोफाइल पिक चेंज किए 2 मिनट हो गए और अभी तक एक भी लाइक नहीं मिला। ऐसी हो गई हैं हमारे देश की नारियां। मेरे लिए समस्या ये नहीं है कि देश कैसे चलेगा ?अपितु मेरे लिए मूल समस्या ये है कहीं देश ऐसे ही ना चलता रहे।

जिस देश के लड़के भारत मां की स्वतंत्रता हेतु अपना जीवन न्यौछावर करने वाले वीर विनायक दामोदर सावरकर को भूलकर अश्लील माँ बहन की गाली को गाना बनाकर गाने वाले हनी सिंह को आदर्श मानने लगें और जिस देश की लड़कियां भारतीय मर्यादा को शर्मसार करने वाली वेश्या सनी लियोनी, पूनम पांडे और शर्लिन चोपड़ा को आइकॉन बना लें तो उस देश की लडकियों की उनकी कोख से कोई भगत सिंह जैसा देशभक्त या स्वामी विवेकानंद जैसा धर्मवीर पैदा नहीं हो सकता।
 मेरी शिकायत मात्र इस देश के लड़के अथवा लड़कियों से ही नहीं है अपितु मेरी शिकायत उनके परिवार के अन्य बड़े सदस्यों से भी है जो बेटी के बाहर निकलने पर कहते हैं कि छोटे कपडे पहन कर मत जाओ लेकिन बेटे से कभी नहीं कहते कि नज़रों मैं गंदगी मत लाओ।
बेटी से कहते हैं कि कभी घर कि इज्जत खराब मत करना पर बेटे से नहीं कहते कि किसी के घर कि इज्जत से खिलवाड़ मत करना।
किसी लड़के से बात करते देखकर जो भाई अपनी बहन को हड़काता है वो ही भाई अपनी गर्लफ्रेंड के किस्से घर में हंस हंस कर सुनाता है।
बेटा घूमे गर्लफ्रेंड के साथ तो कहते हैं अरे बेटा बड़ा हो गया है और बेटी अगर अपने  दोस्त से भी बातें करें तो कहते हैं कि बेशर्म हो गई है।
पहले शोषण घर से बंद करना होगा तब समाज से शिकायत करने वाले स्तर पर पहुंचेंगे। आज वह समय आ गया है जब इस देश की युवा तरुणाई एकजुट होकर कहे कि सत्तालोभियों उठो और भागो यहाँ से क्योंकि हम अर्थात देश के कर्णधार जाग चुके हैं। ये देश एक बार फिर क्रान्ति चाहता है लेकिन वह क्रांति खून की नहीं ,विचारों की हो। उस वैचारिक क्रान्ति के लिए आवश्यक है एकात्मवाद। वह एकात्मवाद जो मानवीयता की बात करता है, वह एकात्मवाद जो राष्ट्र सर्वप्रथम की बात करता है, वह एकात्मवाद जो मातृभूमि के वंदन की बात करता है। आज इसी को आधार बनाकर हम स्वयं को पुनः विश्वगुरू के पद पर प्रतिस्थापित कर सकते हैं।

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