Tuesday 16 April 2024

प्रणय संबंध के प्रथम चरण की कविता

अंश लेकर अश्विनी का, मर्म साधा हरिप्रिया का

चंद्र के सौभाग्य का, अब तुम्हीं बस प्रण प्रथम हो।


रीतियों संग मीत बनकर, मन सदा तुम ही बसोगी

धीति हो तुम इस हृदय की, जो अहिर्निश ही रहेगी।


सौगंध मुझको है तिलक की, तांबूल जैसे मैं रहूंगा

खीज भी होगी कभी तो, ओष्ठ स्मित फिर भी करूंगा।


आरंभ है, अनुभूति भी नव, मनभाव दिखलाऊं तो कैसे

कुछ दिनों में आ रही तुम, प्रण अभी बतलाऊं तो ऐसे 

पूजनों के प्रथम तल पर, स्वास्तिवाचन होता है जैसे

अनुदिन सुबह उठकर करूंगा, निक्षण अधर पर मैं भी वैसे


नव-नवेले संबंध का, आगाज प्रतिष्ठित हो रहा है

योग के आनंद का, वैराज अधिष्ठित हो रहा है।

कलानिधि की नीति बन तुम, हर निशा द्युति से भरो

हर क्षया रतिदान कर, फिर वंश वर्धित भी करो।


Sunday 24 March 2024

Holi 2024... जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......

दौड़-दौड़ कर रट लगायें, सर जी माँगे बेल 

माथा ठोंकें, छाती पीटें, हो गया देखो खेल 

जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......


दोस्त गए थे पहले और अब जा पहुंचे सरदार

धरी रह गई सारी चालें. हो गया बंटाधार


जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......


सिंह सिंह तू भगत सिंह है. खूब चढ़ाया झाड़

असल खेल का होगा खुलासा, पहुंचेंगे तिहाड़

जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......


अक्ल बंद थी, फंसे तिहाड़ और नहीं मिल रहा चैन

खूब जमेगा अब रंग जी, आ रहा मफलर मैन

जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......


जैसा करोगे, वैसा भरोगे, यही रीत का खेल

हाय लगी है कविराज की, जाओगे सीधे जेल

जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......


सबको था भई खूब भरोसा, नहीं कोई था डाउट

बाबा बैठे काजू खाएं, पेपर होते आउट

जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......


जब से बनी है फिर से देखो, बाबा की सरकार

गुंडे भागे UP छोड़ के, हो रही जय जयकार

जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......


होली का है रंग निराला, मिले रंग से रंग।

बढ़ जातीं फिर खुशियां और भी, वो जो होती संग॥ 

जोगीरा सारारा रा रा...... जोगीरा सारारा रा रा......

Tuesday 9 January 2024

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Friday 24 March 2023

भविष्य का इतिहास आपको स्थान नहीं देगा... पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम खुला पत्र


 आदरणीय अखिलेश यादव जी

पूर्व मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश सरकार)/राष्ट्रीय अध्यक्ष (समाजवादी पार्टी)


सादर नमस्कार,

वैसे सामान्य आचरण यह होता है कि मैं सीधे उस मुद्दे पर आऊं, जिसकी वजह से मैं आज यह पत्र लिखने के लिए मजबूर हुआ लेकिन मैं ऐसा ना करते हुए अपना पूर्ण परिचय दे देता हूं। इसकी वजह यह है कि आपके द्वारा "पालित" समाजवादी पार्टी मीडिया सेल ने बीते दिनों मेरे बारे में बहुत खोजबीन की, लेकिन दुर्भाग्य से उनके सूत्रों को जब कुछ भी नकारात्मक नहीं मिला तो उन्होंने मनगढ़ंत कहानियां बनाकर आपकी उस टीम को उपलब्ध करा दिया। हास्यास्पद बात यह रही कि जिस टीम पर आप करोड़ों खर्च कर रहे हैं, उसने उन कहानियों की पुष्टि उन नेताओं तक से नहीं की, जो आपकी पार्टी में थे और मेरे संपर्क में थे। खैर, उन्होंने जो किया, उसका खामियाजा श्रीराम की कृपा से भुगत ही रहे हैं। लेकिन इन परिस्थितियों के बीच मैं खुद ही अपने बारे में बता देता हूं, ताकि आपको मेहनत ना करनी पड़े और कम समय में मेरी बात समझ सकें।


मेरा नाम विश्व गौरव हैं। पेशे से पत्रकार हूं। पत्रकारिता में करीब 11 साल डिजिटल मीडिया को दे चुका हूं। इनमें से 5 साल उसी उत्तर प्रदेश में राज्य स्तर पर काम किया है, जहां के आप मुख्यमंत्री रहे हैं। कुछ मीडिया प्रशिक्षण संस्थानों में उनके अनुरोध पर व्याख्यान के लिए भी जाता हूं। छात्र जीवन में जिस संगठन से जुड़ा रहा, सौभाग्य से वहां काम करते हुए हम और आप दोनों ही कुछ भिन्नताओं के साथ विपक्ष में ही थे। फिर कुछ समय के लिए वह वक्त भी देखा, जिसमें कभी पूरी ऊर्जा के साथ गलत का विरोध करते दिखने वाले लोगों ने गांधारी का अनुसरण करते हुए आंखों पर पट्टी बांध ली। आखिर करते भी क्यों ना, आप भी धृतराष्ट्र की भूमिका में आ गए थे और आपने तो 'संजयों' को भी खुद से दूर कर दिया और शकुनियों की कुटिल चालों के समर्थन में खड़े हो गए थे। मैं संघ का एक गर्वित और प्रशिक्षित स्वयंसेवक हूं, संघ के मूल विचार को आत्मसात करता हूं, परंतु कुछ मौकों पर कुछ स्वयंसेवकों की कार्यपद्धति से असहमत रहता हूं। संघ के मूल विचार में कहीं कोई खामी नहीं है, यह अपने अध्ययन, प्रशिक्षण और अनुभव के आधार पर लिख रहा हूं।


बात करें परिवार की तो जान लीजिए पूरा तीन पीढ़ियों वाला संघ परिवार है।  दादी जी ने आपातकाल यानी तानाशाही के वक्त भूमिगत स्वयंसेवकों के लिए रोटियां बनाई हैं और बाबा जी सेवानिवृत्त राजपत्रित अधिकारी हैं, तथा अब अपना अधिकांश वक्त अध्ययन, विचार, परिवार, संगठन, समाज और ध्यान - ईश्वर भक्ति को देते हैं। पिताजी कानून की पढ़ाई के बाद पत्रकारिता में आए, अभी वही कर रहे हैं। एक छोटा भाई पत्रकार है, दूसरा एमबीए के बाद एक निजी संस्थान में नौकरी कर रहा है। पत्नी पत्रकार थी। विभिन्न मीडिया संस्थाओं के लिए कुछ लिखती -पढ़ती रहती थी लेकिन आपके "पालितों" ने जब हाल ही में मेरे चरित्र हनन का प्रयास किया तो उसने अपना पत्रकारिता धर्म और पत्नी धर्म निभाते हुए उस झूठ का प्रतिकार किया तो आपके "पालितों" ने उस पर भी अभद्र टिप्पणी करना शुरू कर दिया। 


अब ईश्वरीय योजना के मुताबिक उस वैचारिक ब्राह्मणी में कार्मिक क्षत्राणी जगी और पूर्णकालिक तौर पर आपके पालितों के सत्य को जग जाहिर करने का दायित्व स्वयं से ही ले लिया। सत्य के लिए लड़ने की प्रेरणा भी उसे संघ से मिली है। पहले सिर्फ उसका रहा और अब हमारा हो चुका परिवार भी संघ से जुड़ा रहा है, वह स्वयं भी सेविका समिति की कार्यकर्ता है। छोटी बहन है, अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र से परास्नातक करने के बाद अब बीएड कर रही है। 4 साल का बेटा है, 10 माह की बेटी है। 


वैसे तो अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछना पत्रकारिता का प्राथमिक दायित्व है लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि सवाल सिर्फ सत्ता पक्ष के प्रतिनिधियों से नहीं पूछने हैं, विपक्षियों से भी पूछने हैं क्योंकि चुना तो उनको भी हमारे प्रदेश की जनता ने ही है। 2017 भाजपा सरकार आने के बाद से ही मुझे भी सूबे की पूर्णकालिक जिम्मेदारी मिली। 5 साल 3 महीने हर दिन के करीब 16 घंटे अलग -अलग जिलों की स्थानीय समस्याओं और स्थानीय वैचारिकी को समझने में दिए हैं। सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार हो या कोरोना काल में अफसरों की लापरवाही, पूरी जिम्मेदारी के साथ उठाया। मजेदार बात यह थी कि एक दिन जब सरकारी लापरवाही पर स्टोरी करता था तो आपकी पार्टी के नेता जो उस मुश्किल वक्त में आपकी ही तरह घरों में कैद हो गए थे, तब सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर उसे जमकर शेयर करते थे और निजी मेसेज/कॉल करके कहते थे - बस भाईसाहब! आप ही हो जो बोल पा रहे हो। धज्जियां उड़ा देते हो भाजपा वालों की। 

वहीं उन खबरों को लेकर कुछ अंधभक्त साथी मुझे सोशल मीडिया पर ही आपका और आपकी पूर्व सहयोगी कांग्रेस का "एजेंट" घोषित कर देते थे।


इसी बीच किसी दिन जब उस आपदाकाल में सुबह सुबह हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री टीम-9 के साथ योजना बैठक के दौरान चुपचाप कोटा से छात्रों को बुला लेते हैं तो वहां से बिना किसी परेशानी के वापस आए उन बच्चों के राजस्थान में फंसे सहयोगी विद्यार्थी कहते हैं - काश! हमारे बिहार में भी योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होते.... तो उसे भी प्रकाशित करना हमारी जिम्मेदारी बन जाती है। उसके प्रकाशन के बाद टीमों की बैटिंग -बोलिंग बदल जाती थी। यह सब तीन साल चला। लेकिन सच कहूं! खुशी इस बात की है कि सरकारी व्यवस्थाओं की खामियों के खिलाफ जब भी खबरें की तो अफसरों ने भले ही कामचोरी की वजह से गालियां दी हों, लेकिन अधिकांशतः सुबह वाली बैठकों में उन विषयों की चर्चा होती थी। मेरे सूत्र बताते हैं कि उस दौरान ऐसी नकारात्मक खबरों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काफी संजीदा थे। साथ ही सूत्रों ने यह भी बताया कि अफसर जरूर भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश करते थे, ताकि ऊपर बात यही जाए कि सब ठीक चल रहा है। हालांकि ऐसे अफसर कुछ ही थे, क्योंकि अगर ऐसा ना होता तो बिना अफसरों की मेहनत के इतनी बड़ी महामारी से निपटना आसान नहीं था। निजी राजनीतिक परिपेक्ष्य की बात करूँ, उससे पहले यह जान लीजिए कि बेहद गर्वित सनातनी और राष्ट्रवादी प्रवृत्ति का व्यक्ति हूँ, लेकिन शिक्षित होने के नाते मतदान करते वक़्त प्राथमिकता अपने निजी प्रत्याशी को ही देता हूँ। हालाँकि कुल 9-10 बार ईवीएम की बटन दबाने का अवसर आया, उनमें से अधिकांश बार ऐसा लगा कि निजी प्रत्याशियों में सब निठल्ले या मेरे अनुभव के बाहर के हैं तो प्राथमिकता उस व्यक्ति को दी, जो संबंधित चुनावी ‘संस्था’ का प्रमुख बनने वाला होता था। इसके साथ ही पत्रकारिता जीवन में पूर्णकालिक तौर पर आने के बाद कभी किसी दल का राजनीतिक समर्थन करने को प्रेरित नहीं किया।


कई बार सरकारी अफ़सरों के षड्यंत्रों का शिकार मुझे भी होना पड़ा, लेकिन सबकुछ झेलते हुए भी अपने बाबाजी की एक बात नहीं भूला। वह कहते हैं- ईमानदारी और मेहनत की सूखी रोटी का आनंद बेईमानी और कामचोरी की खीर में भी नहीं आता। पीतांबरा माई की कृपा से जितनी मेहनत करता हूँ, उसके बदले संस्थान पर्याप्त धनराशि दे देता है। मैं यह नहीं कहूँगा कि इच्छा शून्य हो गया हूँ। निःसंदेह मेरी इच्छाएँ असंख्य हैं, लेकिन जीवन लोभरिक्त है। जो भी अपने कौशल, परिश्रम और पौरुष से प्राप्त है, उतना ही पर्याप्त मानता हूँ। आने वाली पीढ़ी में लोभशून्यता और नैतिक दायित्व का बीज डाल पाऊँ, बस यही एक लक्ष्य है। इससे अधिक मेरे परिचय में है नहीं, इसके अतिरिक्त जो कुछ भी बचता है, वह नितांत निजी है। उसका हानि-लाभ भी उतना ही निजी है, इसलिए उसे परिचय में शामिल नहीं कर रहा हूँ। अब आते हैं उस विषय पर जिसके चलते मुझे यह पत्र लिखने को मजबूर होना पड़ा। 


अखिलेश जी, वैसे तो हम जिस संघ परिवार से आते हैं, वहां जन्म आधारित जाति व्यवस्था पर गर्व या शर्म जैसी बातें परिधि के बाहर रहती हैं, लेकिन चूँकि हम जिस सामाजिक व्यवस्था में रह रहे हैं, वहाँ इस बात पर आपका भविष्य तय करता है कि आपकी जन्मजाति क्या है, इसलिए पत्रकारिता में रहने के नाते कई बार जन्म जाति आधारित व्यवस्था की विसंगतियों पर भी बात करनी पड़ती है। मैंने कई बार आपको और आपके नेताओं को जाति पूछने के बाद व्यवहार बदलते देखा है। ब्राह्मण परिवारों में जन्म लेने वालों के प्रति आपके नेताओं-कार्यकर्ताओं का व्यवहार सोशल मीडिया पर अक्षम्य रहता है, कई बार समय मिलने पर उनका प्रतिकार भी करता हूँ लेकिन इसबार मामला किसी ब्राह्मण नेता/व्यक्ति/अफसर का नहीं बल्कि भारत का है, भारत की संस्कृति का है। आप उस प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं, जो मर्यादा के प्रतिमान स्थापित करने वाले श्रीराम की जन्मभूमि है। जब मुग़लिया सलतनत ने भारत की मेधा का सम्मान करते हुए नवरत्नों में सर्वाधिक महत्व एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे बीरबल को दिया, तब उसी मुग़लिया सल्तनत की ग़ुलामी को मानसिक रूप से लगभग स्वीकार कर चुके भारतीयों में आत्मविश्वास भरने का काम इसी उत्तर प्रदेश के एक ब्राह्मण आत्माराम दुबे के घर में जन्मे तुलसी ने किया। आप उस पार्टी से आते हैं जिसे ब्राह्मण परिवारों में जन्मे नेताओं ने ज़मीनी स्तर पर मज़बूती दी। इस परंपरा जनेश्वर मिश्रा से लेकर माता प्रसाद पांडे तक चली। आपसे पहले उन ब्राह्मणों के विचारों को आपके नेताओं ने सिर-आंख पर बैठाया। आज भी कई ब्राह्मण नेता आपके इर्द-गिर्द रहते हैं। उनमें से कई तो आपके पैर भी छूते हैं, क्योंकि उनको ऐसा लगता है कि आप बाक़ी नेताओं की तुलना में अधिक ज्ञानी और ऊर्जावान हैं। 


महोदय, हाल ही में आपकी पार्टी के एक नेता ने श्रीरामचरित मानस पर सवाल उठाए। सोशल मीडिया पर मैंने देखा कि आपकी राजनीतिक विचारधारा को पोषित करने में लगे कई कीबोर्ड क्रांतिकारियों ने तो श्रीराम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए। कुछ साथियों ने क़ानून का सहारा लिया और वैमनस्यता फैलाने वाले उस नेता के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराया, ताकि आगे का काम क़ानून करे। वहीं मेरे जैसे कलमकारों ने उसका कलम से प्रतिकार किया। यह लोकतंत्र है, लेकिन लोकतंत्र में स्वतंत्रता और स्वछंदता के अंतर को भी समझना ज़रूरी होता है। जब तक बाक़ी बोल रहे थे, तब तक ठीक था, लेकिन हाल ही में आपने भी उस विषय पर अपना रुख़ स्पष्ट करते हुए कह दिया, ‘रामचरितमानस के खिलाफ कोई नहीं है। लेकिन जो कुछ आपत्तियां हैं, वह आज की नहीं हैं। वह 5 हजार साल पुरानी आपत्तियां हैं। इस बात को सरकार भी जानती है और पूरा समाज जानता है। जो गलत है, वह गलत है। अगर कोई सोने की तख्ती पर भी शूद्र के बारे में लिखकर दे देगा, तब भी मैं नहीं मानूंगा।’


आपकी बात सुनी तो लगा कि अब सीधा संवाद करना चाहिए। पहले एक छोटा सा क़िस्सा सुना देता हूँ। मेरे गाँव से 3-4 हमउम्र रिश्तेदार आए थे। सभी गाँव में ही रहते थे तो कभी सोया चाप नहीं खाई थी। हमने सोया चाप और रूमाली रोटी ऑर्डर की। हमने खाना शुरू ही किया था कि अचानक मेरी पत्नी ने मज़ाक़ में एक से कह दिया कि भाभी, आप भी नॉनवेज खाने लगीं? इसके बाद उन्होंने तुरंत कुल्ला किया और हम पर नाराज़ होने लगीं कि धर्म भ्रष्ट करवा दिया। बाक़ी लोगों के मन में भी शंका आ गई कि कहीं हमने उन्हें नॉनवेज तो नहीं खिला दिया। हालाँकि बाकियों को तो समझा दिया लेकिन वो भाभी जी मानने को तैयार नहीं थीं। आज इस बात को क़रीब दो साल हो गए हैं, हम 50 बार मज़ाक़ के लिए क्षमा याचना कर चुके हैं,और यह भी कह चुके हैं कि वह नॉनवेज नहीं सोया चाप थी। लेकिन भाभी जी इन दो सालों में सैकड़ों जगह कह चुकी हैं कि हमारे परिवार में सब नॉनवेज खाते हैं और दूसरों को भी षड्यंत्र करके खिला देते हैं। हैरानी वाली बात यह है कि उन्हें बहुत अच्छे से पता है कि हमारी पूरी तीन पीढ़ियाँ कितनी धार्मिक प्रवृत्ति की हैं, फिर भी वह सत्य स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। 

यह सिर्फ़ एक क़िस्सा है। इसका श्रीरामचरितमानस वाले विवाद से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता है आप और आपके नेता भी उसी श्रेणी के हैं, जो ख़ुद से दूसरे के सत्य की अपने अनुसार व्याख्या करते हैं और जब सामने वाला अपने सत्य की व्याख्या करता है तो आप उसके सत्य को झूठ साबित करने की कोशिश करते हैं। हमारे एक पूर्वज ने विपरीत परिस्थितियों में सनातन की पताका को लहराया, आपने उनके शब्दों की अपनी सुविधानुसार गलत व्याख्या की और जब उन शब्दों के रचनाकर के वैचारिक वंशजों ने कहा कि आप उन शब्दों की गलत व्याख्या कर रहे हैं, तो आप उनका ही विरोध करने लगे। 


अखिलेशजी! आप पिछड़ों के नाम पर राजनीति करते हैं, लेकिन याद रखिए! राष्ट्र का मतलब सिर्फ़ एक जातिगत समाज नहीं होता। राष्ट्र बनता है जब हम अपनी संस्कृति की एकात्मता की रक्षा करते हुए अंतिम व्यक्ति के लिए भी सम-विधान यानी एक जैसी व्यवस्था/सुविधा की बात करें। मेरे मन में किसी के लिए द्वेष नहीं है, और यदि किसी के मन में है तो उसे दूर करना हमारी ज़िम्मेदारी है, ना कि उस खाईं को और बढ़ाना। हम सभी एक हैं और अपनी साझी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए एकजुट होना होगा। 


अखिलेश जी! मुख्यमंत्री किसी दल या जाति का नहीं होता। मुख्यमंत्री प्रदेश का होता है। मेरी शुभकामनाएँ हैं, आप फिर से उत्तर प्रदेश की सत्ता को सँभाले लेकिन मेरी इन शुभकामनाओं के साथ यह भी समझ लीजिए कि यदि आपके दल को मैंने उस वक़्त वोट ना भी दिया तो भी आप मेरे मुख्यमंत्री रहेंगे। उस वक़्त आपकी ज़िम्मेदारी होगी कि यदि कोई आपके समुदाय का सदस्य उस ‘सम-विधान’ के साथ छेड़छाड़ करे तो आप जातिगत तुष्टिकरण को दरकिनार कर, नीति का साथ दें। सरकारें लोगों के समर्थन से बनती हैं, लेकिन विपक्ष भी लोगों के समर्थन से ही बनता है। सरकार और विपक्ष दोनों के नेताओं की ज़िम्मेदारी है कि वे जनभावना का सम्मान भी करें और नैतिकता का साथ भी ना छोड़ें। राजनीति में संबोधनों का बड़ा महत्व रहता है, आपको आपकी पार्टी के नेता ‘भइया’ कहकर संबोधित करते हैं, अब यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उस संबोधन के भाव को अपने व्यवहार में कुछ ऐसे शामिल करें कि आज से 50 साल के बाद आपको आपका विपक्षी नेता भी ‘अखिलेश भइया’ कहकर संबोधित करे। 

अखिलेश जी! आप जब मानस की ग़लत व्याख्या अपने वोटबैंक को साधने के लिए करते हैं तो हो सकता है कि उसका आपको तात्कालिक लाभ मिलता दिख रहा हो, लेकिन दीर्घकालिक परिणाम बहुत भयावह होंगे। याद रखिएगा! जिस राष्ट्र के लोग अपनी संस्कृति और महापुरुषों का सम्मान नहीं करते, भविष्य में लिखे जाने वाले इतिहास में उन्हें सकारात्मक स्थान नहीं मिलता।


यह पत्र मैं आपको सोशल मीडिया के माध्यम से भी उपलब्ध करा रहा हूँ, और पोस्ट के माध्यम से भी भेज रहा हूँ। उम्मीद है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष कम से कम दोनों में से एक जगह पर तो नज़र रखता ही होगा। विश्वास मानिए, यदि आप दोनों में से किसी एक पर भी नज़र नहीं रखते हैं तो आपके राजनीतिक भविष्य को श्रीराम भी नहीं संवार पाएँगे।


अशेष मंगलकामनाओं के साथ

विश्व गौरव

पत्रकार

Monday 6 March 2023

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा



कांग्रेस थी, हो गई गायब , वामी हो गए अगवा।

रंग चढ़ा मेहनत का देखो, पूर्वोत्तर भी भगवा।।

जोगीरा सा रा रा रा


देश के दिल में दिल्ली है और दिल्ली में 'मतवाला'

पूछताछ में राज खुल गए, चचा किए घोटाला 

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा



लूट- लूट के घर को भरता, सबको भेजे जेल

भारत माँ की जय बोल के, सर जी खेलें खेल

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा



कभी सपा तो कभी भाजपा, सिक्का है वो खोटा।

झूठ बोलना उसकी आदत, है बिन पेंदी का लोटा।

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा


तुलसी को वो गाली देवे, खूब मचावे गंध

ताज होटल में चले जब थप्पड़, ठठरी गई बंध

बोलो सारा रारा रा….


टीपू रोए , आजम रोए, बचा ना कौनो काम

बुलडोज़र खुब दौड़ चला है, बोलो जय श्रीराम 

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा


रामचरित की प्रतियाँ जलतीं, चुप बैठी सरकार

रामकृपा से कुर्सी पाए, अब बदल गया व्यवहार

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा


बुआ होलिका मूल निवासी, प्रह्लाद था बाभन

जानें  कैसी थ्योरी  लाते,  बामसेफ  के  रावन

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा



कोस-कोस पर पानी बदले, घाट-घाट पर चप्पू

हर सूबे में धरम बदलता, गिरगिट जैसा पप्पू

बोलो सारा रारा रा, जोगीरा सारा रारा रा


सपा का चिल्लर देता गाली, खूब फैलाए झूठ।

पड़ी फिर जब सच की लाठी, बट्ट गए रे सूज।

बोलो सारा रारा रा….


बालाजी के चेले है वो,लगे है थोड़े सख्त

दरबार में पहुंचे नक्कटे खुद भी हो गए भक्त 

बोलो सारा रारा रा….


बागेश्वर में बाबा जी है, खूब जमावे रंग

बालाजी जी ने गदा चलाया विरोधी हो गए दंग

बोलो सारा रारा रा….


इफ्तारी को भोज बताएं, होली को हुड़दंग

बीएचयू पर चढ़ गया भइया, सिकुलर वाला रंग

बोलो सारा रारा रा….


पेट्रोल की कीमत उछली, बढ़े गैस के दाम,

अच्छे दिन की आस में जनता, नेता भरें गोदाम

जोगीरा सारा रा रा रा...


रंग बिरंगे रंग यहाँ पर, रंग हमारी जान

सजी रहे होठों पे सबके, होली में मुस्कान

जोगीरा सारा रा रा रा...

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...